Wednesday, September 1, 2010

प्रभु

तू है विराजमान हर कण में,
इस विश्वास में जीते हैं,
तेरा वजूद एक भ्रम है,
ऐसा भी कुछ ज्ञानी कहते हैं,
क्या तेरा होना सिर्फ़ भ्रम है,
संसार माया नहीं सत्य है या,
सिर्फ़ तू सत्य है और यह संसार माया है, भ्रम है,
तू आयेगा जब जब धर्म की ग्लानि होगी,
या है उपस्थित हर क्षण हर कण में निरंतर,
क्या मानूं कि जब नहीं आया तो,
है सब धर्मयुक्त व्यवस्थित,
हर तरफ फैली यह अफ़रा-तफ़री भी,
और हर कण में तेरी उपस्थिति भी,
कैसे उपेक्षित करूं यह द्वंद,
इस द्विविधा से हमें उबारने के लिये,
अपने नियम को फिर से परिभाषित करने के लिये,
तू है अनादि अनन्त अखंड अछेद अभेद सुबेद,
यह सदा के लिये निर्धारित करने के लिये,
एक बार फिर से आ‌ओ मेरे प्रभु,
सत्य और भ्रम का भेद मिटा‌ओ मेरे प्रभु॥

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति
    कृष्ण जन्माष्टमी के पर पर हार्दिक शुभकामनाये.....
    जय श्रीकृष्ण

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  2. मिश्र जी, हौसला-आफ़जाई के लिए धन्यवाद । भविष्य मे भी स्नेह की आशा रहेगी ।

    जन्माष्टमी की आप को भी बधाई और शुभकामनाएं । जय श्रीकृष्ण ॥

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