मन हो एकाग्रचित्त,
परिणाम से अविचलित।
लोक चर्चा से न होकर भ्रमित,
उद्देश्य को इगिंत।
अकर्मण्यता से विलगित,
प्रभु को समर्पित।
ऐसा ही उद्यम होगा अमोघ,
यह समझो अकाट्य निश्चित॥
पुरानी यादे
7 years ago
संत कबीर के शब्दों में : यह संसार काग़द की पुडिया बूंद पड़े गल जाना है
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