जीवन की इस आपा-धापी में,
एक अनजानी सफ़लता की खोज में,
निरन्तर भाग रहा है मनुष्य,
जैसे कोई मृग मरुभूमि में,
जिसे दिखता है जल, पर जो है नहीं,
वो भागता है उस ओर जी जान लगाकर,
जल है, उसे है पूर्ण विश्वास इस दृष्ट पर,
क्यों माने कि हैं ये सिर्फ़ लहरें प्रतीत रेत पर,
जब सब कुछ है उसे दृष्टि-गोचर,
जो सिर्फ़ श्रव्य नहीं दृष्टि-बंधन नहीं,
इस भ्रम जाल से मुक्ति का मार्ग कैसे मिले,
मृग हो या मनुष्य उचित राह पर कैसे चले,
ज्ञान, विश्वास, पुरुषार्थ कि प्राप्ति से पहले,
सफ़ल जीवन के लिये सन्मार्ग कैसे मिले,
जिस पर चल कर उसे गंतव्य मिले, इन्द्रजाल नहीं,
गुरु ही देगा वह ज्ञान का प्रकाश ,
गुरु-ज्ञान से ही विकसित होगा विश्वास,
उस विश्वास से ही विकसित होगा पुरुषार्थ,
उस पुरुषार्थ से ही मिलेगा वह सन्मार्ग,
जो जाता है जल की ओर मरीचिका कि ओर नहीं,
हे प्रभु इससे पहले कि कुछ और दे,
एक सद्गुरु से अवश्य मिलवा दे,
जिससे मिट जायेंगे सब भ्रम, कट जायेगें बंधन,
तब ही मिलेगा परमानंद, सफ़ल होगा यह जीवन,
गुरु की खोज से बढ़ कर कोई और खोज नहीं।
पुरानी यादे
7 years ago
बढ़िया रचना । यह एक ऐसी खोज है जो जीवन भर जारी रहती है ।
ReplyDeleteGuru and Govind , both reside in us. We just need need to realize this fact.
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