न उदात्त प्रेम,
न अतिसय घृणा,
न मिलन की उत्कट अभिलाषा,
न वियोग का अत्यंत क्लेष,
फिर भी हम हैं सहयात्री,
इस काल खंड में,
यह नियति का है आशीर्वाद,
या है अभिशाप,
यह तो निर्धारित होगा,
यात्रा में हमारे व्यवहार पर॥
पुरानी यादे
7 years ago
संत कबीर के शब्दों में : यह संसार काग़द की पुडिया बूंद पड़े गल जाना है
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
ReplyDeleteसुनील जी , आप की टिप्पड़ी के लिए धन्यवाद । भविष्य मे भी आप के स्नेह की आशा रहेगी ।
ReplyDeleteमध्यम मार्ग सर्वोत्त्तम .सुन्दर अभिव्यक्ति.बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ़ है! बधाई!
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