Saturday, August 21, 2010

साथ

न उदात्त प्रेम,
न अतिसय घृणा,
न मिलन की उत्कट अभिलाषा,
न वियोग का अत्यंत क्लेष,
फिर भी हम हैं सहयात्री,
इस काल खंड में,
यह नियति का है आशीर्वाद,
या है अभिशाप,
यह तो निर्धारित होगा,
यात्रा में हमारे व्यवहार पर॥

4 comments:

  1. दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

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  2. सुनील जी , आप की टिप्पड़ी के लिए धन्यवाद । भविष्य मे भी आप के स्नेह की आशा रहेगी ।

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  3. मध्यम मार्ग सर्वोत्त्तम .सुन्दर अभिव्यक्ति.बधाई.

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  4. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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