Friday, July 30, 2010

हार या जीत

किस हार में छुपी है जीत,
और किस जीत में छुपी है हार,
इस हार जीत में उलझा है जीवन,
भ्रमित हु‌आ है अन्तर्मन।

जिस जीत से गर्वित हो कर,
चहुं ओर फिरता था कल तक,
आज मन पछताता है यह पाकर,
था वह एक पड़ाव न कि मन्ज़िल।

हमें कोशिशें जारी रखनी थी,
नयी मन्ज़िलों कि राह में,
कोशिशें नयी राहों की खोज में,
कोशिशें नये सहयात्रियों से सहयोग में।

क्यों नही समझ पाया यह सत्य,
न हार महत्वपूर्ण है न जीत,
सिर्फ़ कोशिश महत्वपूर्ण है,
वह भी अविकल अविरल।

हर हार के बाद जीत है,
हर जीत के बाद हार ,
हर जीत के बाद और भी जीतें हैं,
हर हार के बाद और भी हारें।

कुछ भी अन्तिम नही है,
सिर्फ़ कोशिश के सिवा।
न हार, न जीत, न पड़ाव, न मन्ज़िल,
सृष्टि चक्र के ओर से छोर तक॥

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